पहला हस्ताक्षर...

कुछ-कुछ पहले जैसा...

सोमवार, 13 अगस्त 2012

संबोधन!




छीन लेता है वो
शब्द और अर्थ..
भाव और संबोधन।
--
संबोधनों की अंतहीन यात्रा में
कुछ संबोधन,
...चुने गए थे,
कुछ में गढ़े गए थे भाव,
कुछ में प्रकट किए थे श्रद्धा और सम्मान...
समय के बूढ़े बरगद ने।
--
पर छीन लिए उन लोगों ने शब्द
चुरा लिए अर्थ...
और संबोधनों का,
संसद, सड़क, मैदान और चौराहों पर किया बलात्कार।
--
तिक्त हुए तिरस्कृत संबोधनों के अपराधियों को
संबोधित करता है बूढ़ा बरगद
पूछता है,
क्यों ठगा तुमने शब्दों को, क्यों लूटे अर्थ...
अब तुम्हारी संतानें
बाबा किसे कहेंगी...
ठगों को, नक्कालों को, भगवा रंग में रंगे सियारों को।
--
यार, लोग ये रामदेव को बाबा क्यों लिखते हैं? रामदेव तो रामदेव है ना.



Image- (c)vivekshukla05@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

परछाईयां

...