पहला हस्ताक्षर...

कुछ-कुछ पहले जैसा...

सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

एक रात गुमशुदा है...






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ये बयान जिस रात का है, वो रात गुमशुदा है! अगर कहीं कोई, दिन और रात की आमद-रवानगी का हिसाब-किताब रखता होगा, तो उसके बहीखाते में इस रात का हिसाब नहीं मिलेगा. रात गुमशुदा है, क्यूंकि, इस रात को 'रात' होने के माने देने वाली सुबह, कभी आई ही नहीं. वो एक बात पर रात से यूँ रूठी, कि दोनों हमेशा-हमेशा के लिए अलग हो गए. लिहाज़ा, जहाँ कहीं कोई...हिसाब-किताब...उसने रात को गुमशुदा करार दे दिया...

रात काली हो गयी थी. रात, पहले काली नहीं थी. पहले, आसमान में चाँद निकला था. रात रोशन थी. अपनी चांदनी में नहाई हुई. चाँद करीब-करीब पूरा था, इसलिए शाम होते ही रात रोशन हो गयी थी. रोशन रात, आमतौर पर काली नहीं होती, क्यूंकि चाँद निकला होता है. लेकिन कई बार चाँद बेअसर हो जाता है. रोशन रात भी काली हो जाती है.

 एक मन था जो खूब चीखना-चिल्लाना चाहता था, पर सब कुछ, अचानक, पहले से ही तय जैसा महसूस हो रहा था, Predetermind! इसीलिए मन कुछ बोल नहीं रहा था. दरअसल, मन का घड़ा भी साफ़ नहीं था शायद.
एक शरीर था, जो खूब चीख रहा था, अपनी बात मनवाने की कोशिश में. पर शायद उसे पता नहीं था कि सब-कुछ पहले से ही तय होता है..
रात, खूब लम्बी हो गयी है. पहले काली थी, अब लम्बी भी हो गयी है. काली और लम्बी रात भयावह होती है. काली रात के दामन में फूल नहीं होते. फूल होते भी हैं तो दिखाई नहीं देते. शायद वो भी काले और भयावह होते होंगे. ऐसी रात खतरनाक होती है...कई बार जानलेवा भी...
ये रात भी काटे नहीं कट रही. रात बेहद लम्बी और काली है. इसकी कोई सुबह नहीं...यह एक कभी ख़त्म न होने वाली रात है...
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आखिरकार, उस रात की सुबह नहीं आई. वो रूठ गई, ऐसी, कि रात की तलाश अब तक जारी है...रात नहीं ढलती, न कभी ख़त्म होती है...
 

2 टिप्‍पणियां:

Puja Upadhyay ने कहा…

कितनी खूबसूरत रात है न...रेत के समंदर में थिरकती नकाबपोश हसीना जैसी, कैसी लोच है, कैसी मादकता...और रात की ख़ामोशी में सुराही से प्याले में छलकती मय की सुरीली आवाज़.

कितना कुछ खो गया है इस रात के काले लिबास में कि फूल नज़र नहीं आते, कहाँ नज़र आती हैं सूरज की रश्मियाँ भी.

तुम्हारी ये रूठी हुयी रात जितनी दिलफरेब है, उतनी ही कातिल भी.

चीयर्स!

Unknown ने कहा…

तुम्हारे शब्दों में जादू है। क्या कहूं पूजा, अंग्रेजी में एक कहावत है, beauty lies in the eyes of the beholder, अब तुम सौंदर्यदृष्टा हो तो तुम्हें इसमें सुंदरता ही दिखेगी...लेकिन जिस गुमशुदा रात का जिक्र है, नायक की जिंदगी में वो रात भयावह थी, जिसने करीब करीब उसकी बलि ले ली। मौत भी तो सुंदर हो जाती है ना। जब हम प्यार करने लगें उससे। इतना कि जिंदगी और उसमें कोई फर्क ही ना रह जाए...भय मिट जाए, सिर्फ प्रेम भरा साहस बच रहे।

परछाईयां

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