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मंगलवार, 7 अगस्त 2012

बारिशें...




सूखे पड़े बरामदे को याद है अब भी,
गई बारिशें।
जब तुम हाथ थामे मेरा,
और रखे कंधे पर सर,
देर तक बैठी निहारती रही थी,
बारिशें।
बरसते मेघों में
भीग रहीं थी हसरतें भी।

इश्किया मकान की उम्र बस साल भर की निकली।
इस साल बदरा रुठे हैं जैसे
दुनिया में बरसा है हाहाकार, सूखे का साल।
मगर, बेबस मन के कच्चे मकान की
तपती खपरैल से
टपक रही है तुम्हारी याद..
बूंद-बूंद.
रिस रिस कर रीतता है,
रस,
जीजिविषा का।
--






जीजिविषा- Strong wish to live on.
Image courtesey- fineartamerica.com

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सावन में नभ रोता या रोती यादें..

Unknown ने कहा…

कब बरसें कितना बरसें,
कैसे बरसें क्योंकर बरसें...
नभ भी जाने हम भी जानें...
:)

परछाईयां

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